दिन
मुझे ठगता है
हर राहगीर में एक चेहरा दिखा
अँधेरे में जा छिपता है...
शाम
मुझे नंगे पाँव
बर्फ पर दौड़ाती है
यादों के पेड़ पर लिखा एक नाम
पते - पत्ते पर पढ़वाती है...
अंगुलियाँ
जबरन बटन दबा
उसे पास बुलाती हैं..
धड़कने
दिन भर उसे कोस
रात को खुशबू में
उसकी
चुपचाप सो जाती हैं..
वजूद मुझे
अंगूठा दिखा
उसका हाथ पकड़
इतराता है ..
दिल के भीतर
तिजोरी तोड़
वो मेरा चैन
रेजगारी समझ ले जाता है...
मुझे तुमसे मुहब्बत है
मेज़ पर जमी धूल
पर लिख
वो फिर गायब हो जाता है...
-नीरा त्यागी
वाह बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत खूब
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