चांद तनहा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां-कहां तनहा
बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा
जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा
हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहां तन्हा
जलती-बुझती-सी रौशनी के परे
सिमटा-सिमटा सा इक मकां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा...
-मीना कुमारी
आपके अल्फाज़ दिल को छू गए.
ReplyDeleteमीना कुमारी तन्हा ही रही । बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 03/11/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत बढ़िया
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