इनकी ख़ुशबू से मुअत्तर है ये गुलशन मेरा,
मेरे बच्चों से महकता है नशेमन मेरा।
खेलते देखती हूँ जब भी कभी बच्चों को,
लौट आता है ज़रा देर को बचपन मेरा।
मुझको मालूम है दरअस्ल है दुनिया फ़ानी,
मोहमाया में गुज़र जाए न जीवन मेरा।
तू जो आ जाए तो बरसात में भीगें दोनों,
सूखा-सूखा ही गुज़र जाए न सावन मेरा।
खो गई कौन सी दुनया में न जाने 'सीमा',
आ तरसता है तेरे वास्ते आँगन मेरा।
-कवियत्री सीमा गुप्ता
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (30-11-2016) के चर्चा मंच "कवि लिखने से डरता हूँ" (चर्चा अंक-2542) पर भी होगी!
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबच्चों के बिना घर अधूरा ....बच्चे बिना सूना घर संसार ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर