बड़ी तीक्ष्ण होती है
स्मृतियों की
स्मरण शक्ति
समेटकर चलती हैं
पूरा लाव-लश्कर अपना
कहीं हिचकियों से
हिला देती हैं अन्तर्मन को
तो कहीं खोल देती हैं
दबे पाँव एहसासों की खिड़कियाँ
जहाँ से आकर
ठंडी हवा का झोंका
कभी भिगो जाता है मन को
तो कभी पलकों को
नम कर जाता है
...
कुछ रिश्तों को
कसौटियों पर
परखा नहीं जाता
इन्हें निभाया जाता है
बस दिल से
स्मृतियों को कभी
जगह नहीं देनी पड़ती
ये खुद-ब-खुद
अपनी जगह बना लेती हैं
एक बार जगह बन जाये तो
फिर रहती है अमिट
सदा के लिए
-सीमा 'सदा' सिंघल
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 20/11/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
सुन्दर रचना
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