Sunday, November 13, 2016

बिकता हुस्न है बाज़ारों में............... प्रकाश सिंह 'अर्श'

इश्क मोहब्बत आवारापन।
संग हुए जब छूटा बचपन ॥

मैं माँ से जब दूर हुआ तो ,
रोया घर, आँचल और आँगन ॥

शीशे के किरचे बिखरे हैं ,
उसने देखा होगा दर्पण ॥

परदे के पीछे बज-बज कर ,
आमंत्रित करते हैं कंगन ॥

चन्दा ,सूरज ,पर्वत, झरना ,
पावन पावन पावन पावन ॥

बिकता हुस्न है बाज़ारों में ,
प्यार मिले है दामन दामन ॥

कौन कहे बिगड़े संगत से ,
देता सर्प को खुश्बू चंदन ॥

दुनिया उसको रब कहती है ,
मैं कहता हूँ उसको साजन॥

-प्रकाश सिंह 'अर्श' 




3 comments: