लग गया झटका 440 व्होल्ट का
कुछ नामी-गिरामी लोगों से
आत्मीयता हो गई
वो कुछ इतनी हुई
कि मैं क्या बताऊँ
उनका कहना था...
ये नक्सली और आतंकवादी
है क्या चीज..इन्हें तो हम
चुटकियों में मसल देंगे..पर
नहीं न चाहते कि ये खत्म हो जाए
???? सोच में पड़ गया मैं..
सामने उसके ये प्रश्न उछाला
??
उसने मेरे कान में कहा...
इनके उन्मूलन के लिए सरकार अकूत
धन देती है,,,,और
यही हमारा चारा-पानी है
गर ये खत्म हो गए तो हम
भूखे मर जाएँगे..
-दिग्विजय अग्रवाल
मैं समझी मैं कुछ तुकबंदी कर लेती हूँ
पर इनकी कलम को बोलते आज देखी मैं
आतंक का दर्द बयां करती ये कविता
आपके साथ साझा कर रही हूँ
सादर
यशोदा
यशोदा
सत्य यही है ।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2016) के चर्चा मंच "आदिशक्ति" (चर्चा अंक-2482) पर भी होगी!
ReplyDeleteशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'