Monday, September 12, 2016

गहरे जल में झट लै जाय............रमेशराज

कहमुकरियाँ
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बात बताऊँ आये लाज, 
गजब भयौ सँग मेरे आज
मेरी चूनर भागा छीन, 
क्या सखि साजन? 
ना सखि बाज।

सखि मैं गेरी पकरि धड़ाम, 
परौ तुरत ये नीला चाम
निकली मुँह से हाये राम, 
सैंया? नहीं गिरी थी गाज।

कहाँ चैन से सोबन देतु, 
पल-पल इन प्रानों को लेतु ,
बोवै काँटे मेरे हेतु, 
क्या सखि साजन? 
नहीं समाज।

बिन झूला के खूब झुलाय, 
गहरे जल में झट लै जाय
खुद भी हिचकोले-से खाय, 
क्या सखि साजन? 
नहीं जहाज।

-रमेशराज, तेवरीकार
अलीगढ़

रमेश राज जी की कहमुकरियाँ
शब्द वही
अर्थ वही
पर प्रस्तुति का
ढंग नया
सादर

4 comments:

  1. आपके प्रश्न में मेरे ऊपर प्रश्नचिन्ह लगाया है यह गरिमा का सवाल है। यह उचित नहीं है , आप तो शुरुआत में मुझे पढ़ रही है प्रिय बहन।
    यशोदा जी, कहमुकरी इसी प्रकार लिखी जाती हैं रमेश राज जी के भाव और कहमुकरी अलग है मेरी अलग कृपया आप देखें।

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  3. लेकिन आपकी इस टिप्पणी के बाद मेरे ब्लॉग पर कोई टिप्पणी नहीं आयी जो आया होगा उसकी नज़रों में हम कहाँ पहुँचे मुझे इस बात का बेहद दुःख हुआ है। लंबे समय बाद पुनः ब्लॉग्गिंग की दुनिया में वापसी की है , ऐसे सवालों को की सत्यता की जाँच पर्सनल होनी चाहिए , एक बार लगा हुआ दाग मिटाने मे बेदाग वालो को कितनी पीड़ा होती होगी। मेरे ब्लॉग पर मैंने आपको रिप्लाई दिए शायद आपने नहीं देखे होंगे। मेरे ब्लॉग मैं मैंने आपकी टिप्पणी नहीं हटाई है वह वहीँ रहेगी। किन्तु उसका खामियाजा मेरी पोस्ट को भुगतना पड़ा वह अपने पाठकों टिप्पणी से मरहूम रह गयी। खैर खुश रहें।
    शशि पुरवार
    http://sapne-shashi.blogspot.in/

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