न मिली छांव कहीं, यूँ तो कई शज़र मिले
वीरान ही मिले सफ़र में जो भी शहर मिले
मंजिल मिले न मिले, मुझे काई परवाह नहीं
मुझे तलाश है मंज़िल की, मंज़िल को ख़बर मिले
हर गुनाह इंसान के चेहरे पर दर्ज रहता है
देखना अगर किसी रोज़ आईने से नज़र मिले
छोटी - सी बात का लोग फ़साना बना देते हैं
अब कैसे यहां लोग किसी से कोई खुलकर मिले
सबको मिला कुछ न कुछ ख़ास क़ुदरत से
फूलों को मिली ख़ुशबू परिन्दो को पर मिले
बहुत मुश्किल से मिलता है कोई चाहने वाला
खोना मत तुम्हें कोई शख़्स ऐसा अगर मिले
कहां हूँ किस हाल में हूँ कोई बताए मुझे
एक मुद्दत हुई मुझे अपनी ही खबर मिले
-विजय कुमार सुखवानी
v_sukhwani@rediffmail.com
बहुत सुन्दर ।
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