Sunday, December 15, 2013

न रंग लायेगा मेरा जिगर जलाना क्या..............‘खुरशीद’ खैराड़ी



फ़क़ीर हम हैं बसायेंगे आशियाना क्या
लुटा के मस्ती को पाइंदगी कमाना क्या

तिरे सवाल का साक़ी जवाब दूं क्या मैं
दरे-हरम से भटक कर शराबख़ाना क्या

ये ज़र्ब भी मैं सहूंगा कि बेवफ़ा है वो
हक़ीक़तों से अज़ीज़ो नज़र चुराना क्या

हर इक नज़र है हिरासाँ हर इक ज़बाँ साकित
ख़ुलूसे-अहले-सियासत को आज़माना क्या

कोई क़ायम यहाँ मुस्तक़िल नहीं प्यारे
सराय ठहरी ये दुनिया तो हक़ जताना क्या

मुझे हरीफ़ों से शिकवा नहीं बस इक ग़म है
न लाज़िमी था हबीबों का साथ आना क्या

जुमूद सोच का तुझ तक रमीदगी तुझ से
इसी हिसार का मरकज़ है ये ज़माना क्या

तिरे लिये तो सजाये हैं थाल भक्तों ने
नहीं सवाब मिरी भूख को मिटाना क्या

सिमट रही है ये दुनिया सभी दिशाओं से
किसी दिशा में भटकते कदम बढ़ाना क्या

न बादबान उतारो ये देखकर माँझी
‘वो नर्मरौ है नदी का मगर ठिकाना क्या’

जदीद फ़िक्र है ‘ख़ुरशीद’ की यही यारो
न रंग लायेगा मेरा जिगर जलाना क्या

‘खुरशीद’ खैराड़ी जोधपुर 09413408422

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