महक रयौ ऊँ महकते नगर बचात भए
सरद की रात में चन्दा के घर चली पूनम
अधर, अधर पे धरैगी अधर बचात भए
सरल समझियो न बा कूँ घनी चपल ऐ बौ
नजर में सब कूँ रखतु ऐ नजर बचात भए
तू अपने आप कूँ इतनौ समझ न खबसूरत
बौ मेरे संग हू नाची, मगर बचात भए
जे खण्डहर नहीं जे तौ धनी एँ महलन के
बिखर रए एँ जो बच्चन के घर बचात भए
जो छंद-बंध सूँ डरत्वें बे देख लेंइ खुदइ
मैं कह रहयौ हूँ गजल कूँ बहर बचात भए
चमन कूँ देख कें मालिन के म्हों सूँ यों निकस्यौ
कटैगी सगरी उमरिया सजर बचात भए
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कमल, गुलाब, जुही, गुलमुहर बचाते हुये
महक रहा हूँ महकते नगर बचाते हुये
शरद की रात में चन्दा के घर चली पूनम
अधर, अधर पे धरेगी अधर बचाते हुये
सरल समझना न उस को बहुत चपल है वो
नज़र में रखती है सब को नज़र बचाते हुये
तुम अपने आप को इतना हसीन मत समझो
वो मेरे साथ भी नाची मगर बचाते हुये
ये खण्डहर नहीं ये तो धनी हैं महलों के
बिखर रहे हैं जो बच्चों के घर बचाते हुये
जो छन्द-बन्ध से डरते हैं आ के देख लें ख़ुद
मैं कह रहा हूँ ग़ज़ल को बहर बचाते हुये
चमन को देख के बरबस ही मालियों ने कहा
तमाम उम्र कटेगी शजर बचाते हुये
नवीन सी. चतुर्वेदी +91 9967024593
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बहुत सुंदर !
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