आप की हूक दिल में जो उठबे लगी
जिन्दगी सगरे पन्ना उलटिबे लगी
बस निहारौ हतो आप कौ चन्द्र-मुख
जा ह्रिदे की नदी घाट चढ़िबे लगी
पीउ तनिबे लग्यौ, बन गई बौ लता
छिन में चढ़िबे लगी छिन उतरिबे लगी
प्रेम कौ रंग जीबन में रस भर गयौ
रेत पानी सौ ब्यौहार करिबे लगी
मन की आबाज सुन कें भयौ जै गजब
ओस की बूँद सूँ प्यास बुझबे लगी
जिन्दगी सगरे पन्ना उलटिबे लगी
बस निहारौ हतो आप कौ चन्द्र-मुख
जा ह्रिदे की नदी घाट चढ़िबे लगी
पीउ तनिबे लग्यौ, बन गई बौ लता
छिन में चढ़िबे लगी छिन उतरिबे लगी
प्रेम कौ रंग जीबन में रस भर गयौ
रेत पानी सौ ब्यौहार करिबे लगी
मन की आबाज सुन कें भयौ जै गजब
ओस की बूँद सूँ प्यास बुझबे लगी
नवीन सी. चतुर्वेदी +91 9967024593
http://wp.me/p2hxFs-1Au
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जैसे ही आप की हूक दिल में उठने लगी,
ज़िन्दगी सारे पन्नों को उलटने लगी
बस आप के चन्द्र-मुख को देखा ही था
कि इस हृदय की नदी घाट चढ़ने लगी
प्रिय तनने लगे तो वह लता बन कर
क्षण-क्षण में चढ़ने और उतरने लगी
प्रेम के रंग ने जीवन में रस भर दिया है,
मानो रेत पानी के जैसा व्यवहार करने लगी है
मन की आवाज़ सुन कर यह चमत्कार हुआ
कि ओस की एक बूँद से ही प्यास बुझने लगी है
प्यार की कसक भरी सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-12-2013) को "शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!!
- ई॰ राहुल मिश्रा
प्रेम कौ रंग जीबन में रस भर गयौ
ReplyDeleteरेत पानी सौ ब्यौहार करिबे लगी
बेहतरीन....
Prem ke aasim utkantha ko chu liya hai aap ne
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..
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