Thursday, October 26, 2017

अधूरे अल्फ़ाज़...........'तरुणा मिश्रा

अल्फ़ाज़ जाने कितने ... मुंह में अटक रहें हैं....
कितने ही किस्से रस्ते में ... मेरे भटक रहें हैं...  

बारिश..तूफ़ान इतने क्यूँ आए.. पता चला अब..
ज़ुल्फ़ें उन्होंने खोली... वो बादल झटक रहें हैं..

निगाहें मिली हैं जब से .. उस ज़ालिम से मेरी..
ग़ज़ले बहक रहीं हैं ...और शेर भटक रहें हैं...

चिलमन के पीछे जाके ... क्यूँ छुप गया है वो...
मुश्किल से जुदाई का .. हम गम गटक रहें हैं..

नज़रो से तेरी पहले ही ... बेहोश है ये दुनिया...
नींद आती नहीं है न ही..कोई ख्व़ाब फटक रहें हैं..

सुखन 'तरु' के अब तो .. उनको भी खटक रहें हैं..
क़ैद रखा जिसमे मुझको .. वो किलें चटक रहें है...


7 comments:

  1. दी नमस्ते,
    आपकी लिखी ये रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 27 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-10-2017) को
    "डूबते हुए रवि को नमन" (चर्चा अंक 2770)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह !
    क्या ख़ूब !
    सुंदर प्रस्तुति।

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  5. निगाहें मिली हैं जब से .. उस ज़ालिम से मेरी..
    ग़ज़ले बहक रहीं हैं ...और शेर भटक रहें हैं...

    वाह वाह। बहुत दिलकश। सुंदर

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  6. ग़ज़लें बहक रही हैं....वाह !!!!

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