
तुम कहते हो
मैं जिद्दी हूँ
और थोड़ी सी
हूँ मनचली ...
हाँ , मैं हूँ
स्वीकार है मुझे
मैं जिद्दी हूँ
थोड़ी सी मनचली भी ........
जब भी माँगा ,
जो कुछ भी माँगा
सब कुछ प्यार से
दिया तुमने ......
चांद , सितारे गर
माँग भी लेती
शायद लेकर आते
जी जान लगाकर भी .........
इतना प्यार
क्यों लुटाते हो
प्यार का मतलब
क्या जानते भी हो ?..
प्यार आवारगी नहीं
न सिर्फ़ है दीवानगी
प्यार बंदगी भी है
और है इबादत भी .........
चलो न , आज
अभी , इसी वक्त
हम , तुम कर लेते
हैं एक वादा ....
गर कभी साथ छूटे तो
बनकर रहना कृष्ण मेरे
राधा बन सताऊंगी नहीं
बन सकती हूँ जोगन मीरा भी ....
-चंचलिका शर्मा
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-10-2017) को
ReplyDelete"सलामत रहो साजना" (चर्चा अंक 2751)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 09 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteप्यार बंदगी भी
ReplyDeleteऔर है इबादत भी....
सुन्दर...।
बहुत सुंदर !
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