समय मेरा गिरवी पड़ा था
जिम्मेदारी के बाजार में.....
सोचा कुछ पल जी लूँ चुराकर
ए सनम, तेरे प्यार में.....
न जाने कैसे आई बात
तुझसे कुछ इक़रार के
कहाँ खो गए प्यार के वो पल
ए प्यार, तेरे प्यार के
ख्वाब खेल गए खेल अपना
दिखा गए सपने तुम संग.....
एक नहीं, दो नहीं बल्कि
भर दिये उसमें अनेको रंग....
अन्त दिखा गए आईना
सपनो का तार तार के.....
कहाँ खो गए प्यार के वो पल
ए प्यार, तेरे प्यार के
कल्पनाओं ने भी वही किया
ले गए ऊँची उड़ान पर......
हवा महल पर खड़ा करके
उड़ा दिया बे-लगाम कर......
सिमट गई फिर एक मुट्ठी में
बना बहाना लाचार के......
कहाँ खो गए प्यार के वो पल
ए प्यार, तेरे प्यार के
मजबूरियों ने भी पलट कर
दिखा दिया कुछ अपना रंग.......
मैंने साथ न दिया उसको
तो भागकर आई तुम्हारे संग......
बता दिया उसने तुम्हें अपना
कुछ नियम इस संसार के.....
कहाँ खो गए प्यार के वो पल
ए प्यार, तेरे प्यार के
उठ गया भरोसा खुशी से अब
यह सब तो बस बेमानी है.....
कभी न करना प्यार किसी से
यह सब से बड़ी नादानी है.......
हाँ, यह सबसे बड़ी नादानी है.......
प्रकाश लुनावत....
रायपुर - 25.09.17
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteलाजवाब 👌
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