हनी , तुझे मैंने पल पल बढ़ते देखा है !
पर तू आज भी मेरी छोटी सी बिटिया है !!
आज तू बारह बरस की है ;
लेकिन वो छोटी सी मेरी लड़की ....
मुझे अब भी याद है !!!
वही जो मेरे कंधो पर बैठकर ,
चाकलेट खरीदने ;
सड़क पार जाती थी !
वही ,जो मेरे बड़ी सी उंगली को ,
अपने छोटे से हाथ में लेकर ;
ठुमकती हुई स्कूल जाती थी !
और वो भी जो रातों को मेरे छाती पर ;
लेटकर मुझे टुकर टुकर देखती थी !
और वो भी ,
जो चुपके से गमलों की मिटटी खाती थी !
और वो भी जो माँ की मार खाकर ,
मेरे पास रोते हुए आती थी ;
शिकायत का पिटारा लेकर !
और तेरी छोटी छोटी पायल ;
छम छम करते हुए तेरे छोटे छोटे पैर !!!
और वो तेरी छोटी छोटी उंगुलियों में शक्कर के दाने !
और क्या क्या ......
तेरा सारा बचपन बस अभी है , अभी नही है !!!
आज तू बारह बरस की है ;
लेकिन वो छोटी सी मेरी लड़की ....
मुझे अब भी याद है !
वो सारी लोरियां ,मुझे याद है ,
जो मैंने तेरे लिए लिखी थी ;
और तुझे गा गा कर सुनाता था , सुलाता था !
और वो अक्सर घर के दरवाजे पर खड़े होकर ,
तेरे स्कूल से आने की राह देखना ;
मुझे अब भी याद आता है !
और वो तुझे देवताओ की तरह सजाना ,
कृष्ण के बाद मैंने सिर्फ़ तुझे सजाया है ;
और हमेशा तुझे बड़ी सुन्दर पाया है !
तुझे मैंने हमेशा चाँद समझा है ….
पूर्णिमा का चाँद !!!
आज तू बारह बरस की है ,
और ,वो छोटी सी मेरी लड़की ;
अब बड़ी हो रही है !
एक दिन विजय छोटी जी कि बड़ी हो जाएँगी ;
बाबुल का घर छोड़कर ,पिया के घर जाएँगी !!!
फिर मैं दरवाजे पर खड़ा हो कर ,
तेरी राह देखूंगा ;
तेरे बिना , मेरी होली कैसी , मेरी दिवाली कैसी !
तेरे बिना ; मेरा दशहरा कैसा ,मेरी ईद कैसी !
तू जब जाए ; तो एक वादा करती जाना ;
हर जनम मेरी बेटी बन कर मेरे घर आना ….
मेरी छोटी सी बिटिया ,
तू कल भी थी ,
आज भी है ,
कल भी रहेंगी ….
लेकिन तेरे बैगर मेरी ईद नही मनेगी ..
क्योंकि मेरे ईद का तू चाँद है !!!
विजय कुमार सपत्ति