कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता
-डॉ.बशीर बद्र
वाह बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबशीर साहब की एक उम्दा गज़ल पढ़वाने के लिए आभार...
ReplyDeleteअद्भुद प्रस्तुती
ReplyDeleteशराबी ने छेड़ा तो बाल पकड़ कर ले गयी पुलिस स्टेशन
बशीर साहब के गज़लें... वाह बहुत खूब...
ReplyDeleteNice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us.. Happy Independence Day 2015.
ReplyDeleteWah!!
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब!
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