Thursday, March 5, 2015

टेसू खिले......संजय वर्मा 'दृष्टि'



 












खिले  टेसू
ऐसे लगते  मानो
खेल रहे हों पहाड़ों से होली

सुबह का सूरज
गोरी के गाल
जैसे बता रहे हों
खेली हमने भी होली
संग टेसू के

प्रकृति के रंगों की छटा
जो मौसम से अपने आप
आ जाती है धरती पर
फीके हो जाते हैं हमारे
निर्मित कृत्रिम रंग
डर लगने लगता है

कोई काट न ले वृक्षों को
ढंक न ले प्रदूषण सूरज को
उपाय ऐसा सोचें
प्रकृति के संग हम
खेल सकें होली

-संजय वर्मा 'दृष्टि' 

लेखक व कवि
रसरंग से......

2 comments:

  1. रंगों के महापर्व होली की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (06-03-2015) को "होली है भइ होली है" { चर्चा अंक-1909 } पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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