हर लहजा तेरे पाँव की आहट सुनाई दे
तू लाख सामने न हो, फिर भी दिखाई दे
आ इस हयाते दर्द को मिल कर गुजार दे
या इस तरह बिछड़ की जमाना दुहाई दे
तेरा ख्याल ही मुझे आया न हो कही
इक रौशनी सी आख से दिल तक दिखाई दे
मिलने की तुझसे फिर न तमन्ना करे ये दिल
इतने खुलूस से मुझे दागे जुदाई दे
देखे तो क़ैस लौ भी दिये की लगे है सर्द
सोचें तो गुल की शाख भी जलती दिखाई दे
- सईद क़ैस
तू लाख सामने न हो, फिर भी दिखाई दे
आ इस हयाते दर्द को मिल कर गुजार दे
या इस तरह बिछड़ की जमाना दुहाई दे
तेरा ख्याल ही मुझे आया न हो कही
इक रौशनी सी आख से दिल तक दिखाई दे
मिलने की तुझसे फिर न तमन्ना करे ये दिल
इतने खुलूस से मुझे दागे जुदाई दे
देखे तो क़ैस लौ भी दिये की लगे है सर्द
सोचें तो गुल की शाख भी जलती दिखाई दे
- सईद क़ैस
सईद क़ैस
पूरा नामः मुहम्मद सईद
जन्मः 28 मई, 1927, लाहोर
पूरा नामः मुहम्मद सईद
जन्मः 28 मई, 1927, लाहोर
वाह !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ ..एक बार यहाँ भी आयें और अवलोकन करें, धन्यवाद।
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति ..
ReplyDeleteइस सुंदर गजल को साझा करने के लिए धन्यवाद यशोदाजी......
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