Thursday, February 13, 2014

कविताएं..... मन से प्रसवित होती है..........यशोदा



कितना आसान है
तोड़ना...

आदतों में शुमार है
तोड़ना...


 

तोड़े जाते हैं
विधायक और सांसद
भला होता है
दोनों का

 

पर.....
दुख होता है
तोड़े जाने का...
शब्दों को...
कितनी आसानी से
तोड़-मरोड़ डालतें हैं
ये गरीब शब्दों को
भाव ही बदल जाते हैं
शब्दों के...
तोड़े जाने के बाद

ज़रा पढ़िये ध्यान से
मूल कविता
और जोड़-तोड़ कर
बनाई कविता को
दोनों के भाव में
फर्क महसूस होगा
बिलकुल वैसा ही
जैसे....
शक्कर की मिठास और
सैकरीन की कड़ुवाहट
भरी मिठास में होता है....

एक अनुनय
कविताएं.....
मन से प्रसवित होती है
मूल रूप में ही रहने दें
-यशोदा

15 comments:

  1. आहत होता है मन जोड़-तोड़ कर
    बनाई कविता को पढ़ कर
    सच्ची अभिव्यक्ति

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  2. मैय्या मोरी मैं नहीं कविता तोड़यो :)

    बहुत सुंदर !

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  3. सहमत हूँ आपसे यशोदा जी .......एक सार्थक मनुहार....

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  4. judne kaa bhi ek ahasaas ,tutne kaa bhi ek ahasaas , sabdon ke saanth samjhaane kaa sunder pryaas.

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  5. baat to pate ki kahi hai sundar rachna ,shukriyaan

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (14-02-2014) को "फूलों के रंग से" ( चर्चा -1523 )
    में "अद्यतन लिंक"
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  8. बेहतरीन पंक्तियाँ .... सच यूँ ही नहीं जन्मती कोई कविता

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  9. bilkul theek bat mai poori tarah se sahmat hoon .......prabhavshali post ke liye sadar aabhar

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  10. बिल्कुल सच कहा है...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

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  11. खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  12. ahh!!!!!!! haan rehne ho vaise hi

    shubhkamnayen

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