कितना आसान है
तोड़ना...
आदतों में शुमार है
तोड़ना...
तोड़े जाते हैं
विधायक और सांसद
भला होता है
दोनों का
पर.....
दुख होता है
तोड़े जाने का...
शब्दों को...
कितनी आसानी से
तोड़-मरोड़ डालतें हैं
ये गरीब शब्दों को
भाव ही बदल जाते हैं
शब्दों के...
तोड़े जाने के बाद
ज़रा पढ़िये ध्यान से
मूल कविता
और जोड़-तोड़ कर
बनाई कविता को
दोनों के भाव में
फर्क महसूस होगा
बिलकुल वैसा ही
जैसे....
शक्कर की मिठास और
सैकरीन की कड़ुवाहट
भरी मिठास में होता है....
एक अनुनय
कविताएं.....
मन से प्रसवित होती है
मूल रूप में ही रहने दें
-यशोदा
आहत होता है मन जोड़-तोड़ कर
ReplyDeleteबनाई कविता को पढ़ कर
सच्ची अभिव्यक्ति
मैय्या मोरी मैं नहीं कविता तोड़यो :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
सहमत हूँ आपसे यशोदा जी .......एक सार्थक मनुहार....
ReplyDeleteसार्थक सटीक विचार ...!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
Kalm ki jadugar-----Kavitri Yashoda.
ReplyDeletejudne kaa bhi ek ahasaas ,tutne kaa bhi ek ahasaas , sabdon ke saanth samjhaane kaa sunder pryaas.
ReplyDeletebaat to pate ki kahi hai sundar rachna ,shukriyaan
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (14-02-2014) को "फूलों के रंग से" ( चर्चा -1523 )
में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन पंक्तियाँ .... सच यूँ ही नहीं जन्मती कोई कविता
ReplyDeleteसच है ..
ReplyDeletebilkul theek bat mai poori tarah se sahmat hoon .......prabhavshali post ke liye sadar aabhar
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा है...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteahh!!!!!!! haan rehne ho vaise hi
ReplyDeleteshubhkamnayen