Friday, July 5, 2013

दर्द को दर्द कहिये न हमदर्द है....................अन्सार कम्बरी

 
चेहरा-चेहरा यहाँ आज क्यों ज़र्द है
जिस तरफ़ देखिये दर्द – ही - दर्द है

अपने चेहरे में कोई ख़राबी नहीं
आपके आईने पर बहुत गर्द है

इस क़दर हम जलाये गए आग में
अब तो सूरज भी अपने लिये सर्द है

साथ देता रहा आख़िरी साँस तक
दर्द को दर्द कहिये न हमदर्द है

बोझ है ज़िन्दगी, इसलिए ‘क़म्बरी’
जो उठा ले इसे बस वही मर्द है
----अन्सार कम्बरी

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  2. एक और उत्कृष्ट प्रस्तुति-
    बहुत बहुत बधाई आदरेया-

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  3. वाह बहुत सुंदर ग़ज़ल ....!!
    शुभकामनायें ....

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