Sunday, July 28, 2013

महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा.....................दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक' .


आज मैं अपनी हर बात पे अड़ूँगा,
महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा,

जमाने गुजारे हैं मैने बन्दगी में तेरी,
शान में तेरी न अब कशीदे पढ़ूँगा,

बेदाग समझता है तेरे हुस्न को जमाना,
दोष मेरे सारे अब तेरे सर ही मढ़ूँगा,

जमीं के सफर में ठोकर जो दी है तूने,
साथ मैं तेरे अब न चाँद पे चढ़ूँगा,

थी मेरी तक़दीर पे तेरी ही हुकूमत,
अब आज तेरी किस्मत मैं ही गढ़ूँगा

----- दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक'


http://yashoda4.blogspot.in/2012/02/blog-post_15.html

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह आपकी कविता पढ कर एक पुराना गीत याद आ गया ।

    मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे , मुझे गम देने वाले तू खुशी को तरसे ।

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