Tuesday, July 30, 2013

भूल गया रोने के लिए अलग एक कमरा रखना..........निधि मेहरोत्रा


यूँ दिल चाहे कितनी ही तकलीफ़ों से भरा रखना
अपनों के आगे लबों पर हँसी का क़तरा रखना

आसान नहीं है यह दिल की अदला बदली दोस्त
तुमसे अरज यही है ख़्याल इस दिल का ज़रा रखना

कितने ही मौसम आये जाएँ हमारे दरमियां
उम्मीदों का शज़र मेरी जां तुम हरा भरा रखना

कोई मसला हो, किसी की कैसी भी बात क्यूँ न हो
पूछे जो कोई तुमसे कुछ तो राय को खरा रखना

मशहूर होकर अक्सर तनहा हो जाते हैं लोग
बुलंदी पर पहुँच आसपास अपनों का दायरा रखना

कम वक़्त में बहुत ज़्यादा पाने की ख़्वाहिश हो जिसे
लाजमी उस शख्स के लिए अपना ज़मीर मरा रखना

जिन ज़ख्मों की बदौलत ज़िन्दगी जीना आ जाता है
उन घावों को तुम अश्कों से हमेशा हरा रखना

कई आलिशान मकां बनाए इस ज़िन्दगी में मैंने
भूल गया रोने के लिए अलग एक कमरा रखना


-निधि मेहरोत्रा

8 comments:

  1. क्या बात ...बहुत खूब

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  2. उम्दा है आदरेया-

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  3. जिन ज़ख्मों की बदौलत ज़िन्दगी जीना आ जाता है
    उन घावों को तुम अश्कों से हमेशा हरा रखना

    बहुत खूब, बेहतरीन
    साभार !

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  4. बढ़िया प्रस्तुति

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