छठी के परव पावन
घटवा पे डूबी उगल बढ़ल जाला,
पनिया में जहर माहुर बितुरल जाला |
सुनी न लोगी
छठी के दिन आइल
घटवा के दुबिया गढ़ी
पनिया के साफ़ करिल |
खरना के दिनवा निजका आवल जाला
अरगा के बेरा हाली निजकल जाला|
फल दौरा सुपलिया
ईंखवा के साजल जाइल
चंदनी से कोसी
सुन्दर ढाकल जाईल |
मनवा में हरषी हरषी भूखल जाला
आदित के भोरे सांझी अरगी जाला|
सुनी ना, सूरज देव
जल्दी जल्दी उग गईल
छठी के परव पावन
खूब सुन्दर भईल|
स्वाति वल्लभा राज
इस रचना के बाद स्वाति जी ने लिखना बंद कर दिया
यार, तुम्हारी यह रचना सच में छठ की पूरी आत्मा उठाकर रख देती है। मैं पढ़ते-पढ़ते जैसे घाट पर पहुँच जाता हूँ, जहाँ लोग पानी साफ करते हैं और पूजा की तैयारी में जुटे रहते हैं। “घटवा, पनिया, फल-दौरा, सुपलिया” जैसे शब्द पूरे माहौल को ज़िंदा कर देते हैं।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर छठ पूजा की आकर्षक माहौल निखर आया है
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