Thursday, October 23, 2025

छठी के परव पावन खूब सुन्दर भईल

 छठी के परव पावन

घटवा पे डूबी उगल बढ़ल जाला,
पनिया में जहर माहुर बितुरल जाला |
सुनी न लोगी
छठी के दिन आइल 
घटवा के दुबिया गढ़ी
पनिया के साफ़ करिल |

खरना के दिनवा निजका आवल जाला
अरगा के बेरा हाली निजकल जाला|
फल दौरा सुपलिया
ईंखवा के साजल जाइल
चंदनी से कोसी 
सुन्दर ढाकल जाईल |


मनवा में हरषी हरषी भूखल जाला
आदित के भोरे सांझी अरगी जाला|
सुनी ना, सूरज देव
जल्दी जल्दी उग गईल
छठी के परव पावन
खूब सुन्दर भईल|

स्वाति वल्लभा राज

इस रचना के बाद स्वाति जी ने लिखना बंद कर दिया

4 comments:

  1. यार, तुम्हारी यह रचना सच में छठ की पूरी आत्मा उठाकर रख देती है। मैं पढ़ते-पढ़ते जैसे घाट पर पहुँच जाता हूँ, जहाँ लोग पानी साफ करते हैं और पूजा की तैयारी में जुटे रहते हैं। “घटवा, पनिया, फल-दौरा, सुपलिया” जैसे शब्द पूरे माहौल को ज़िंदा कर देते हैं।

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  2. सुंदर प्रस्तुति

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  3. बहुत सुंदर छठ पूजा की आकर्षक माहौल निखर आया है

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