Tuesday, September 22, 2020

इंसानियत का कोई मजहब नहीं होता ....अज्ञात

इंसानियत का कोई मजहब नहीं होता ....अज्ञात 

मस्जिद पे गिरता है
मंदिर पे भी बरसता है..
ए बादल बता तेरा मजहब कौन सा है........।।

इमाम की तू प्यास बुझाए
पुजारी की भी तृष्णा मिटाए..
ए पानी बता तेरा मजहब कौन सा है.... ।।

मज़ारों की शान बढाता है
मूर्तियों को भी सजाता है..
ए फूल बता तेरा मजहब कौन सा है........।।

सारे जहाँ को रोशन करता है
सृष्टि को उजाला देता है..
ए सूरज बता तेरा मजहब कौन सा है.........।।

मुस्लिम तूझ पे कब्र बनाता है
हिंदू आखिर तूझ में ही विलीन होता है..
ए मिट्टी बता तेरा मजहब कौन सा है......।।

ऐ दोस्त मजहब से दूर हटकर,
इंसान बनो
क्योंकि इंसानियत का कोई मजहब नहीं होता... ।।

-रचनाकार 

अज्ञात

11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. सत्य कथन
    इंसानियत का कोई मजहब नहीं होता...

    सुंदर रचना

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुंदर मन को छूती अभिव्यक्ति।
    सादर

    ReplyDelete
  4. सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  5. इंसानियत खुद एक मज़हब है
    सुंदर रचना।

    पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर

    ReplyDelete
  6. इंसानियत का जिन्दा रहना इंसानों के लिए जरुरी है वर्ना इंसान-इंसान नहीं रह सकता
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  7. सार्थक रचना - - इंसानियत से ऊपर कुछ भी नहीं।

    ReplyDelete
  8. वाह!लाजवाब सृजन ।

    ReplyDelete
  9. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete
  10. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 22 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... https://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    ReplyDelete