Wednesday, September 2, 2020

बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी ...कैफ़े आज़मी

शोर यूँ ही न परिंदों* ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा।

बानी-ए-जश्ने-बहाराँ** ने ये सोचा भी नहीं
किस ने काटों को लहू अपना पिलाया होगा।

अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे,
ये सराब*** उन को समंदर नज़र आया होगा।

बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी,
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा।
1919-2002
-कैफ़े आज़मी

:शब्दार्थ: 
*पक्षियों, **वसन्तोत्सव के प्रेरणा स्रोतों, ***धोखा

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 02 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही लाजवाब
    वाह!!!

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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