Monday, November 2, 2015

नज़र आप ही से मिलाना भी है...........मजाज़ लखनवी


जिगर और दिल को बचाना भी है
नज़र आप ही से मिलाना भी है

महब्बत का हर भेद पाना भी है
मगर अपना दामन बचाना भी है

ये दुनिया ये उक़्बा कहाँ जाइये
कहीं अह्ले -दिल का ठिकाना भी है?

मुझे आज साहिल पे रोने भी दो
कि तूफ़ान में मुस्कुराना भी है

ज़माने से आगे तो बढ़िये ‘मजाज़’
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है

मजाज़ लखनवी
1911- 1955

उक़्बाः परलोक : यमलोक, अह्ले -दिल : दिल वालों का


1 comment:

  1. आभार इस प्रस्तुति को पढ़वाने के लिये।

    ReplyDelete