जीवन की आपा-धापी में
सोचा न था
पीछे छूट जाएंगे
कुछ सपने कुछ लम्हें
कुछ वादे कुछ इरादे
वक्त का दरिया बहते-बहते
बहा ले जाएगा सब कुछ
बचपन की यादें
युवा आँखों में तैरते सपने
बालों में नजर आती सफेदी
चश्में से झांकती कुछ आशाएं
शायद सब कुछ
मगर ऐसा न हो सका
वो सब जो पीछे छूटना था
आज भी साथ है
बस अपने ही पीछे छूट चले हैं
छूट चले हैं या छोड़ चले हैं
आहिस्ता-आहिस्ता
उम्र के मोड़ पर
अब साथ है तो सिर्फ
रिश्तों से बंधे कुछ नाम
और दीवारों में टंगी कुछ तस्वीरें
शायद कल
इन तस्वीरों में शामिल हो जाऊँ
मैं भी !!!
-शुभ्रा ठाकुर, रायपुर
सुन्दर रचना
ReplyDeleteशुभ्रा ठाकुर जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
ReplyDelete