सिंधु का उच्छवास घन है
तड़ित तम का विकल मन है
भीति क्या नभ है व्यथा का
आँसुओं में सिक्त अंचल
स्वर अकम्पित कर दिशाएँ
मोड़ सब भू की शिराएँ
गा रहे आँधी प्रलय
तेरे लिए ही आज मंगल
मोह क्या निशि के चरों का
शलभ के झुलसे परों का
साथ अक्षय ज्वाल सा
तू ले चला अनमोल संबल
पथ न भूले एक पग भी
घर न खोए लघु विहग भी
स्निग्ध लौ की तूलिका से
आंक सब की छांह उज्ज्वल
हो लिए सब साथ अपने
मृदुल आहटहीन सपने
तू इन्हें पाथेय बिन चिर
प्यास के मधु में न खो चल
धूप में अब बोलना क्या
क्षार में अब तोलना क्या
प्रात: हँस रो कर गिनेगा
स्वर्ण कितने हो चुके पल
दीप मेरे जल अकंपित घुल अचंचल
-महादेवी वर्मा
परिचय:
::महादेवी वर्मा::
आधुनिक युग की मीरा
हिन्दी के साहित्याकाश में छायावादी युग के प्रणेता 'प्रसाद-पन्त-निराला' की अद्वितीय त्रयी के साथ-साथ अपनी कालजयी रचनाओं की अमिट छाप छोड़ती हुई अमर ज्योति-तारिका के समान दूर-दूर तक काव्य-बिम्बों की छटा बिखेरती यदि कोई महिला जन्मजात प्रतिभा है
तो वह है ''महादेवी वर्मा''
रचना साभार अनहद कृति
(प्रस्तोता : पुष्पराज चसवाल)
अति सुंदर....
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा 12-11-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2158 पर की जाएगी |
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
धन्यवाद
सुंदर प्रस्तुति। दीप पर्व की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteMahadevi Verma's all hindi poems are too good ,I love to read al of them,so please keep posting all collection of Mahadevi Verma.-indian marriage site
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ReplyDeleteVery nice poem. I am sharing your poem with my friends. Keep the good work going. Vivahsanyog.com Indian Matrimonial
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