एक तुम्हारी याद
चली आती है चुपचाप
दबे कदमों से
सहमी साँसों के साथ
कितने सागर
कितनी नदियां
कितनी नावें
टतबंध सारे तोड़कर
बंधन सारे छोड़कर
तय कर सारी दूरियां
सात समंदर पार से भी
नदियां नदियां
दरिया दरिया
सागर सागर
डगमगाती नावें
कंपकपाती-सी पतवारें
आशाओं के टिमटिमाते
जुगनू
अंधियारी - सी रात
और तुम्हारी याद
चली आती है चुपचाप
दबे कदमों से
सहमी साँसों के साथ
बस ! तुम नहीं आते
और मैं रह जाती हूँ
निःशब्द !!! चुपचाप !!!
-शुभ्रा ठाकुर, रायपुर
सुंदर भाव !
ReplyDeleteबेहद उम्दा रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
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