लगती है नई।
नए अर्थ समझती है।
पहली बारिश पर,
मिटटी की सौंधी महक,
जैसे
प्रथम प्रेम से परिचय।
फिर बरसे
तो प्रेम-सी ही
शीतलता
कभी तेज बौछार
चुभती तन को,
मानो प्रेम की हो
आक्रामकता
और जब बदली
बरस जाए-
तो व्योम उतना ही
स्वच्छ और निर्मल,
जितना कि प्रेम।
स्पर्श बिना मन को
भिगोने का अहसास
देती है पहली बारिश।
-ज्योति जैन
बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-06-2015) को "यही छटा है जीवन की...पहली बरसात में" {चर्चा अंक - 2018} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
स्पर्श बिना मन को
ReplyDeleteभिगोने का अहसास
देती है पहली बारिश।
..बहुत सुन्दर ..
तन मन न भीगे तो कैसे बारिश