एक पुस्तक की समीक्षा पढ़ रही थी.............
उसी समय मेरे मित्र भाई कुंवर कुसुमेश के ग़ज़ल संग्रह
के कुछ अंश पढ़े................अपने आप को नहीं रोक पाई
और मैंने यहां पर संजो लिया..............क्षमा भाई कुसुमेंश जी
उसी समय मेरे मित्र भाई कुंवर कुसुमेश के ग़ज़ल संग्रह
के कुछ अंश पढ़े................अपने आप को नहीं रोक पाई
और मैंने यहां पर संजो लिया..............क्षमा भाई कुसुमेंश जी
जो बड़े प्यार से मिलता है लपककर तुझसे
आदमी दिल का भी अच्छा हो वो ऐसा न समझ
आज के बच्चों पे है पश्चिमी जादू का असर
अब तो दस साल के बच्चे को भी बच्चा न समझ
ये कहावत है पुरानी सी मगर सच्ची है
तू चमकती हुई हर चीज़ को सोना न समझ
-"कुंवर कसुमेश"
आज के अखबार की सुर्खी हमेशा की तरह
फिर वही दंगा, वही गोली हमेशा की तरह
धर्म के मसले पे संसद में छिड़ी लम्बी बहस
मज़हबों की आग फिर भड़की हमेशा की तरह
आप थाने में रपट किसकी करेंगे दोस्तों
चोर जब पहने मिले वर्दी हमेशा की तरह
"कुंवर कसुमेश"
सांप सड़कों पे नज़र आयेंगे
और बांबी में सपेरा होगा
वक्त दोहरा रहा है अपने को
फिर सलीबों पे मसीहा होगा
आदमियत से जिसको मतलब है
देख लेना वो अकेला होगा
"कुंवर कसुमेश"
बरी होने लगे गुंडे, लफंगे
अदालत क्या, यहाँ की मुंसिफी क्या
इसे इंसान कह दूं भी तो कैसे
न जाने हो गया है आदमी क्या
कभी लाएगी तब्दीली जहाँ में .
'कुंवर' मुफ़लिस की आँखों की नमी क्या
"कुंवर कसुमेश"
बुरा न देखते, सुनते, न बोलते जो कभी
कहाँ हैं तीन वो बन्दर तलाश करना है
कयाम दिल में किसी के करूँगा मैं लेकिन
अभी तो अपना मुझे घर तलाश करना है
सही है बात 'कुंवर' अटपटी भी है लेकिन
कि अपने मुल्क में रहबर तलाश करना है
"कुंवर कसुमेश"
सांस चलती भी नहीं है, टूटती भी है नहीं
अब पता चलने लगा, ये मुफलिसी भी खूब है
हो मुबारक आपको यारों दिखावे का चलन
आँख में आंसू लिए लब पर हंसी भी खूब है
हाथ में लाखों लकीरों का ज़खीरा है 'कुँवर'
आसमां वाले तेरी कारीगरी भी खूब है
"कुंवर कसुमेश"
फिर वही दंगा, वही गोली हमेशा की तरह
धर्म के मसले पे संसद में छिड़ी लम्बी बहस
मज़हबों की आग फिर भड़की हमेशा की तरह
आप थाने में रपट किसकी करेंगे दोस्तों
चोर जब पहने मिले वर्दी हमेशा की तरह
"कुंवर कसुमेश"
सांप सड़कों पे नज़र आयेंगे
और बांबी में सपेरा होगा
वक्त दोहरा रहा है अपने को
फिर सलीबों पे मसीहा होगा
आदमियत से जिसको मतलब है
देख लेना वो अकेला होगा
"कुंवर कसुमेश"
बरी होने लगे गुंडे, लफंगे
अदालत क्या, यहाँ की मुंसिफी क्या
इसे इंसान कह दूं भी तो कैसे
न जाने हो गया है आदमी क्या
कभी लाएगी तब्दीली जहाँ में .
'कुंवर' मुफ़लिस की आँखों की नमी क्या
"कुंवर कसुमेश"
बुरा न देखते, सुनते, न बोलते जो कभी
कहाँ हैं तीन वो बन्दर तलाश करना है
कयाम दिल में किसी के करूँगा मैं लेकिन
अभी तो अपना मुझे घर तलाश करना है
सही है बात 'कुंवर' अटपटी भी है लेकिन
कि अपने मुल्क में रहबर तलाश करना है
"कुंवर कसुमेश"
सांस चलती भी नहीं है, टूटती भी है नहीं
अब पता चलने लगा, ये मुफलिसी भी खूब है
हो मुबारक आपको यारों दिखावे का चलन
आँख में आंसू लिए लब पर हंसी भी खूब है
हाथ में लाखों लकीरों का ज़खीरा है 'कुँवर'
आसमां वाले तेरी कारीगरी भी खूब है
"कुंवर कसुमेश"
ओह ,मेरी किताब का ज़िक्र.
ReplyDeleteधन्यवाद,यशोदा जी.
बहुत सुन्दर, सार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteआदमियत से जिसको मतलब है
ReplyDeleteदेख लेना वो अकेल होगा .....
बहुत सुंदर गज़ल यशोदा जी ....
आभार इसे साझा किया ....
शुभकामनायें कुसुमेश जी को ...