Saturday, October 10, 2020

तुम सीमा के पार न जाना .....कौशल शुक्ला


जहाँ नहीं अधिकार न जाना।
तुम सीमा के पार न जाना।।

दीपक एक पतंगे लाखों
स्वप्न लिए परिणय की आँखों
कुछ भी हाथ नहीं आता है
मृग-तृष्णा संसार न जाना?
तुम सीमा के पार न जाना।।

सबके मन मे चंचलता है
जिसको जितना भी मिलता है
इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं
जीवन का व्यवहार न जाना?
तुम सीमा के पार न जाना।।

सुख में साथ निभाती है यह
दुःख में ऑंख दिखाती है यह
संकट के घिरते ही दुनियाँ
करती तीखे वार न जाना?
तुम सीमा के पार न जाना।।

-कौशल शुक्ला 

5 comments:

  1. जिसको जितना भी मिलता है
    इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं
    जीवन का व्यवहार न जाना?
    तुम सीमा के पार न जाना।।

    वाह !!!बहुत बढ़िया

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  2. वाह!! रचना सटीक भी है, और उस में रस भी है। पढ़ना बहुत अच्छा लगा!

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  3. क‍ितनी खूबसूरती से आपने सारी बात कह डाली कौशल जी ...वाह ...क‍ि
    सबके मन मे चंचलता है
    जिसको जितना भी मिलता है
    इच्छाएँ बढ़ती जाती हैं
    जीवन का व्यवहार न जाना?
    तुम सीमा के पार न जाना।।...वाह

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