Wednesday, September 5, 2018

गीतुल मितवा........प्रेम शर्मा

भीगा-भीगा
रोया-रोया,
गीतुल मितवा
खोया-खोया,
कवन गुहारू
केहू अकुवारूँ ,
कण्ठ हलाहल
ताल कहरवा ।
           
सुर सम्वाद
सधे ना साधे,
मुखड़े-बोल
अधूरे-आधे,
नाद अनन्ता
सबद रमन्ता
न कोउ कन्ता
नाहि नहरवा ।
      
ओहि रे बचुआ
मानुष अँकुवा,
तुहिन तो
हमि इन्द्रधनुषवा,
जीवन जोगे
मरन अजोगे,
नदी-नाँव
यात्रा संजोगे,
समय जुझारू
काल बुहारू ,
निधनं श्रेयः
खेत सुरगवा ।
- प्रेम शर्मा

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6.9.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3086 में दिया जाएगा

    हार्दिक धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. वाह ! अद्भुत अनुपम ! अति सुन्दर !

    ReplyDelete