अंधेरे घर में जो मेरे उजाला कर गया,
वही क्यों आज फिर मुझसे किनारा कर गया।
हिदायत मुझको खुश रहने कि ही देता रहा,
भला क्यों आज खुशियाँ ना-गवारा कर गया।
रही थी दुश्मनी मेरी सदा जिस शख़्स से,
मिरे गिरते मकाँ पर वो सहारा कर गया।
मुझे क़ाफ़िर जुदा करता रहा सबसे यहाँ,
यहाँ तरक़ीब उसकी सब में ज़ाया कर गया।
जुबाँ से इश्क़ जो उनके बयां हो ना सका,
तो वो नजरों से उल्फ़त का इशारा कर गया।
"हरी" सब शोहरतों में चूर थे अपनी यहाँ
~हरिओम माहोरे
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-09-2018) को "आंखों में ख्वाब" (चर्चा अंक-3081) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेई जी को नमन और श्रद्धांजलि।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय🙏
Deleteसुंदर रचना 👌👌👌
ReplyDeleteजी शुक्रिया🙏
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