Saturday, August 18, 2018

शेरो-सुख़न तक ले चलो...अदम गोंडवी


भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो 
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाक़िफ़ हो गई 
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्‍त की तालीम देना बाद में 
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है 
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग 
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो
-अदम गोंडवी 

9 comments:

  1. जो ग़ज़ल माशूक के जलवों से वाक़िफ़ हो गई
    उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

    वाह बहुत ही सुन्दर ...
    गोंडवी साहब की तो बात ही अलग हैं

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  2. 👏👏👏👏👏वाह बहुत खूब बानगी ...

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  3. बहुत सुंदर 👏👏👏

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-08-2018) को "सिमट गया संसार" (चर्चा अंक-3068) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 19 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. अदम गोंडवी साब की सादगी और बेबाक़ी उनका साधारण लहज़ा

    हमें उनकी नज्मों ओर गजलों में देखने को मिलता है जो आपकी हमारी और सभी के मन की बात होती है।

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