Saturday, March 18, 2017

उस रात.....डॉ भावना












उस रात
जब बेला ने खिलने से मना कर दिया था
तो ख़ुशबू उदास हो गयी थी

उस रात
जब चाँदनी ने फेर ली अपनी नज़रें
चाँद को देखकर
तो रो पड़ा था आसमान

उस रात
जब नदी ने बिल्कुल शांत हो
रोक ली थी अपनी धाराएँ
तो समन्दर दहाड़ने लगा था

उस रात
जब बेला ने मना कर दिया पेड़ के साथ
लिपटने से
तो ......
पहली बार 
पेड़ की शाखाएँ
झुकने लगी थीं
और बेला ने जाना था अपना अस्तित्व

पहली बार
बेला को नाज़ हुआ था अपनी सुगंध पर
चाँदनी कुछ और निखर गयी थी
नदी कुछ और चंचल हो गयी थी

पहली बार
प्रकृति हैरान थी
बहुत कोशिश की गयी
बदलाव को रोकने की
परंपरा -संस्कृति की दुहाई दी गयी
धर्म -ग्रंथों का हवाला दिया गया
पर ..... स्थितियां बदल चुकी थीं
-डॉ भावना

6 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना। साधुवाद

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  2. कमाल की रचना

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  3. उस रात
    जब बेला ने मना कर दिया पेड़ के साथ
    लिपटने से
    तो ......
    पहली बार
    पेड़ की शाखाएँ
    झुकने लगी थीं
    और बेला ने जाना था अपना अस्तित्व
    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।

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