Saturday, August 22, 2015

गुलमोहर की सिंदूरी छांव तले...... "फाल्गुनी"
















कल जब 
निरंतर कोशिशों के बाद, 
नहीं जा सकी 
तुम्हारी याद, 

तब
गुलमोहर की सिंदूरी छांव तले 
गहराती 
श्यामल सांझ के
पन्नों पर 
लिखी मैंने 
प्रेम-कविता, 
शब्दों की नाजुक कलियां समेट 
सजाया उसे 
आसमान में उड़ते 
हंसों की 
श्वेत-पंक्तियों के परों पर, 
चांद ने तिकोनी हंसी से 
देर तक निहारा मेरे इस पागलपन को, 
नन्हे सितारों ने 
अपनी दूधिया रोशनी में
खूब नहलाया मेरी प्रेम कविता को, 
कितने अभागे हो ना तुम 

जो 
ना कभी मेरे प्रेम के 
विलक्षण अहसास के साक्षी होते हो 
ना जान पाते हो कि 
कैसे जन्म लेती है कविता। 
लेकिन कितने भाग्यशाली हो तुम 
मेरे साथ तुम्हें समूची सांवल‍ी कायनात प्रेम करती है, 
और एक खूबसूरत कविता जन्म लेती है 
सिर्फ तुम्हारे कारण।

-स्मृति आदित्य जोशी "फाल्गुनी"

6 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  2. आभार भाई मयंक जी

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  3. लेकिन कितने भाग्यशाली हो तुम
    मेरे साथ तुम्हें समूची सांवल‍ी कायनात प्रेम करती है,
    और एक खूबसूरत कविता जन्म लेती है
    सिर्फ तुम्हारे कारण।

    बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  4. जो
    ना कभी मेरे प्रेम के
    विलक्षण अहसास के साक्षी होते हो
    ना जान पाते हो कि
    कैसे जन्म लेती है कविता।
    यहीं है कविता का सत्य...........
    http://savanxxx.blogspot.in

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