Tuesday, August 18, 2015


मैं सतत् अपने स्वभाव से जलता हूँ,

ना तुम्हारे कम होने से कम होता हूँ,

ना तुम्हारे बढ़ने से बढ़ता हूँ,

मेरी बात क्यों नहीं मानते...?

मैं सच कह रहा हूँ ऐ अंधकार!

मैं सतत् अपने स्वभाव से जलता हूँ...।

- स्वप्नेश चौहान

4 comments:

  1. बहुत ही बढियाँ दीये का ये स्वभाव कितना सुन्दर है

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  2. मैं सतत् अपने स्वभाव से जलता हूँ.

    बहुत सुंदर भाव.

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