जब भी तुम निकलो अपने घर से
मुझसे मिलने के लिए
तब रास्ते में मिलना
गहरे हरे नीम से
पूछना कि उसकी ठंडी छाँव के नीचे से
जब मैं गुजरती हूँ
तब 'किसे' याद करती हूँ!
जब भी तुम निकलो मुझसे मिलने के लिए
रास्ते में मिलना
सिंदूरी-पीले गुलमोहर से
पूछना कि उसकी सुकोमल पत्तियों को
सहेजते हुए
मैं 'किसे' महसूस करती हूँ!
जब भी तुम निकलो मुझसे मिलने के लिए
रास्ते में मिलना
केसरिया आम के पेड़ से
पूछना कि उसकी गुलाबी-ललछौंही आम्रमंजरियों को
सूँघते हुए
मैं 'किसकी' खुशबू लेती हूँ!
जब भी तुम निकलो मुझसे मिलने के लिए
रास्ते में मिलना मंदिर के तुलसी चौरे से
पूछना
आते-जाते उसे देखते
मैं 'किसकी' कुशलता की कामना करती हूँ!
जब भी तुम निकलो मुझसे मिलने के लिए
रास्ते में मिलना
उस क्षत-विक्षत बरगद से भी
पूछना कि उसके लहूलुहान तने को देखकर
मैं 'किस' अधूरे और बिखरे 'रिश्ते' के बारे में सोचती हूँ!
जब भी तुम निकलो मुझसे मिलने के लिए
तब मिलना इन सबसे
मुझे समझने के लिए,
क्योंकि पेड़ कभी झूठ नहीं बोलते!
- स्मृति आदित्य जोशी 'फाल्गुनी'
फेसबुक से...
बहुत ख़ूबसूरत अहसास...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
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