Friday, December 5, 2014

हवाओं के मुक़ाबिल हूँ......पूजा भाटिया



हवाओं के मुक़ाबिल हूँ
चराग़ों की वो महफ़िल हूँ

ख़ुदा जाने कहाँ हूँ मैं
न बाहर हूँ न शामिल हूँ

मिरे कांधे पे वो बिखरे
हैं मौज इक वो मैं साहिल हूँ

ये चादर, सलवटें, तकिया
बताते हैं, मैं ग़ाफ़िल हूँ

मैं जो चाहे वो पा लूं, पर
अभी ख़ुद ही से ग़ाफ़िल हूँ

यहां सच बेसहारा है
सहारा दूँ? मैं बातिल हूँ

उमीदें तुम से रखती हूँ
कहो तो कितनी जाहिल हूँ

जुआ है ज़िन्दगी जैसे
जो जीते उसको हासिल हूँ

रहे ज़द में जुनूँ जिसके
उसी को फिर मैं हासिल हूँ

पूजा भाटिया 08425848550


http://wp.me/p2hxFs-1Sh

4 comments:

  1. बहुत उम्दा प्रस्तुति...

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  2. Man se nikl kar man ko chhune vali ....rchna ....
    thankyou.... ji

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  3. बेहतरीन बेहतरीन मरहवा।

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