हंसो तो साथ हंसेगी दुनिया बैठे अकेले रोना होगा
चुपके-चुपके बहा कर आंसू दिल के दुख को धोना होगा ।
बैरन रात बड़ी दुनिया की आंख से जो भी टपका मोती
पलकों से ही उठाना होगा पलकों ही से पिरोना होगा ।
खोने और पाने का जीवन नाम रखा है हर कोई जाने
उस का भेद कोई न देखा क्या पाना, क्या खोना होगा ।
बिन चाहे, बिन बोले पल में टूट-फूट कर फिर बन जाए
बालक सोच रहा है अब भी ऐसा कोई खिलौना होगा ।
प्यारों से मिल जाए प्यारे अनहोनी कब होगी
कांटे फूल बनेंगे कैसे,कब सुख सेज बिछौना होगा ।
बहते-बहते काम न आए लाख भंवर तूफानी-सागर
अब मंझधार में अपने हाथों जीवन नाव डुबोना होगा ।
जो भी दिल ने भूल से चाहा भूल में जाना हो के रहेगा
सोच-सोच कर हुआ न कुछ भी आओ अब तो खोना होगा ।
क्यूं जीते-जी हिम्मत हारें क्यूं फ़रियादें क्यूं ये पुकारे
होते-होते हो जाएगा आख़िर जो भी होना होगा
'मीरा' जी क्यूं सोच सताए पलक-पलक डोरी लहराए
किस्मत जो भी रंग दिखाए अपने दिल में समाना होगा
-मोहम्मद सनाउल्लाह सानी 'मीराजी'
चुपके-चुपके बहा कर आंसू दिल के दुख को धोना होगा ।
बैरन रात बड़ी दुनिया की आंख से जो भी टपका मोती
पलकों से ही उठाना होगा पलकों ही से पिरोना होगा ।
खोने और पाने का जीवन नाम रखा है हर कोई जाने
उस का भेद कोई न देखा क्या पाना, क्या खोना होगा ।
बिन चाहे, बिन बोले पल में टूट-फूट कर फिर बन जाए
बालक सोच रहा है अब भी ऐसा कोई खिलौना होगा ।
प्यारों से मिल जाए प्यारे अनहोनी कब होगी
कांटे फूल बनेंगे कैसे,कब सुख सेज बिछौना होगा ।
बहते-बहते काम न आए लाख भंवर तूफानी-सागर
अब मंझधार में अपने हाथों जीवन नाव डुबोना होगा ।
जो भी दिल ने भूल से चाहा भूल में जाना हो के रहेगा
सोच-सोच कर हुआ न कुछ भी आओ अब तो खोना होगा ।
क्यूं जीते-जी हिम्मत हारें क्यूं फ़रियादें क्यूं ये पुकारे
होते-होते हो जाएगा आख़िर जो भी होना होगा
'मीरा' जी क्यूं सोच सताए पलक-पलक डोरी लहराए
किस्मत जो भी रंग दिखाए अपने दिल में समाना होगा
-मोहम्मद सनाउल्लाह सानी 'मीराजी'
चित्र प्राप्तः गूगल इमेज
मीराजी (२५ मई १९१२ - ४ नवम्बर १९४९ ) का असली नाम मोहम्मद सनाउल्लाह सानी था। फितरत से आवारा और हद दर्जे के बोहेमियन मीराजी ने यह उपनाम अपने एक असफल प्रेम की नायिका मीरा सेन के गम से प्रेरित हो कर रखा
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहोनी से क्या डरना है
घुट -घुट कर क्या मरना है
भाग्यविधाता खुद बनाना है
पंख लगा कर उड़ना है
अज़ीज़ जौनपुरी
यशोदा जी ,आज ज़रा सी चूक गईं तो क्यों परेशान हैं आप - गिरते हैं शहसवार ही मैदाने-जंग में .
ReplyDeleteइतना प्रयास कर बढ़िया सूत्र एकत्र किये हैं आपने - आभारी हैं हम !
उम्दा प्रस्तुति..
ReplyDeleteअभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है,
ReplyDeleteप्यास शेष है,
अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,
पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया,
श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में,
अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया,
अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,
अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।
अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है।
प्यास शेष है।
पूरा गीत पढने के लिए देखें हमारा ये ब्लॉग ____
http://gazalsandhya.blogspot.in/
उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteसच होनी तो होकर रहती उसे कोई नहीं टाल सकता .....
ReplyDeleteमोहम्मद सनाउल्लाह सानी 'मीराजी' की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धनयवाद!
क्यूं जीते-जी हिम्मत हारें क्यूं फरियादें क्यूं ये पुकारे
ReplyDeleteहोते-होते हो जाएगा आख़िर जो भी होना होगा।
अच्छी रचना।
मीरा जी और उनकी रचना से परिचय कराने के लिए आभार ।