जलाते ही दीया, तेज़ हवा होना
क्या मुनासिब ये हर मर्तबा होना ?
हम भी बतायेंगे, सोच लिया है
तुम्हें ही नहीं आता खफा होना
तजुर्बा कहता है मुमकिन नहीं
हर बार हर वादा वफ़ा होना
नाज़-ओ-नखरों से तेरे नहीं एतराज़ पर
कुछ ज़्यादा तो नहीं इस दफ़ा होना ?
ख़ुश है वही जिन्हें मोहब्बत न हुई
पर बुरा भी नहीं ये तजुर्बा होना
मंज़िलें अलग है रास्ते फ़रक़
बेहतर है अब हमारा जुदा होना
देख लिया पत्थर पे सर पटक कर
महसूस होता रहा तेरा खुदा होना
देखा है दर्द का बेदर्द हो जाना
वो जानता है ज़हर का दवा होना
आपकी समाअतों ने शायर बना दिया
था मुकद्दर में ‘अमित’ ये बदा होना
क्या मुनासिब ये हर मर्तबा होना ?
हम भी बतायेंगे, सोच लिया है
तुम्हें ही नहीं आता खफा होना
तजुर्बा कहता है मुमकिन नहीं
हर बार हर वादा वफ़ा होना
नाज़-ओ-नखरों से तेरे नहीं एतराज़ पर
कुछ ज़्यादा तो नहीं इस दफ़ा होना ?
ख़ुश है वही जिन्हें मोहब्बत न हुई
पर बुरा भी नहीं ये तजुर्बा होना
मंज़िलें अलग है रास्ते फ़रक़
बेहतर है अब हमारा जुदा होना
देख लिया पत्थर पे सर पटक कर
महसूस होता रहा तेरा खुदा होना
देखा है दर्द का बेदर्द हो जाना
वो जानता है ज़हर का दवा होना
आपकी समाअतों ने शायर बना दिया
था मुकद्दर में ‘अमित’ ये बदा होना
-अमित हर्ष
बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 08/03/2014 को "जादू है आवाज में":चर्चा मंच :चर्चा अंक :1545 पर.
बहुत सुंदर प्रस्तुति ...! रचना साझा करने के लिए आभार ...
ReplyDeleteRECENT POST - पुरानी होली.
बहुत सुन्दर रचना आभार इसे साझा करने के लिए यशोदा जी
ReplyDeleteबहुत खूब अमित सर। हर पंक्ति की अपनी अलग कहानी है....आभार एंव बधाई
ReplyDeleteसमय के साथ संवाद करती आपकी यह प्रस्तुित काफी सराहनीय है। मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE पर आपके सुझावों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteदेख लिया पत्थर पे सर पटक कर
ReplyDeleteमहसूस होता रहा तेरा खुदा होना
देखा है दर्द का बेदर्द हो जाना
वो जानता है ज़हर का दवा होना
kya baat hai
हम भी बताएँगे ................
ReplyDeleteबहुत सुंदर
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteलाजवाब शेरो से सजाया है इस मुकम्मल गज़ल को ... बहुत उम्दा ...
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