होली के मौसम में रंगो के सपने
सपनों के रंगों में भींगे सब अपने
नयनों में आंज गए सुरमे सी शाम
कानों में खनक रही मीठी सी झांझ
फगुनाहट लिपट रही आंचल सी तमनें
बाहर परदेस मगर नंदग्राम मन में
डूब रहा सूरज औ सांझ लगी छिपने
आसमान होली के खेल रहा सपने
चार दिवस साथ गए आठ बिरह बीते
तीज,चौथ, पूनो सब चले गए रीते
खेत सभी सरसों है टेसू सब जंगल
पुरवाई गाती है आंगन में मंगल
बौराए आमों पर कूक रखी पिक ने
देहरी पर डाल दिए एपन के लिखने
पाती में प्रिय जन को रस रंजन पहुंचे
फगणा चौताल साथ मन रंजन हुए
अनियारे फागुन का अभिनंदन पहुँचे
सुख आएं दुख जाएं बने रहे अपने
अपनो के साथ सदा सजे रहे सपने
पूर्णिमा वर्मन
जन्मः 27 जून, 1955, पीलीभीत
रविवारीय रसरंग मे छपी रचना
होली की हार्दिक शुभकामनाऐं । सुंदर रचना ।
ReplyDeleteपूर्णिमा जी की प्राकृतिक रंगों से सजी लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteबधाई होली की सभी को ...
वहह क्या बात है सुन्दर उपमाओ से सुसज्जित होली .. शुभकामनाये
ReplyDeleteवाह...सामयिक और सुन्दर पोस्ट.....आप को भी होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@हास्यकविता/जोरू का गुलाम
खेत सभी सरसों है टेसू सब जंगल
ReplyDeleteपुरवाई गाती है आंगन में मंगल
.......अहा अच्छा है..............