Sunday, June 30, 2013

घरौंदे............हरकीरत हीर(प्रवासी कविता)







उसने कहा :

तुम तो शाख से गिरा

वह तिनका हो

जिसे बहाकर कोई भी

अपने संग ले जाए

मैंने कहा :

शाख से गिरे तिनके भी तो

घरौंदे बन जाते हैं

किसी परिंदे के।
--- हरकीरत हीर

13 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हरकीरत जी ....!!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [01.07.2013]
    चर्चामंच 1293 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  3. सुंदर रचना और अभिव्यक्ति .......!!

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  4. बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति विचारों की इस रचना के माध्यम से |

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  5. Bahot hi haosla mand kavita hai!!!Waqayi me kamaal~

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  6. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।

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  7. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ..............

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  8. भावो को संजोये रचना......

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  9. वाह , बहुत खूब,

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  10. बहुत सुंदर रचना
    बहुत सुंदर

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  11. KOMAL AHSAS ....SABHI APNEAAP ME MAHATVPURN HAIN ....

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