भीतर का पेड़ उग रहा है
जिसके बीज मैं निगल गई थी बचपन में
इसके बड़े होने में पूरे साठ वर्ष लग गए
मेरी नसें इसकी जड़ें हैं
मेरी नाड़ियां इसकी शाखाएं
मेर विचार इसके छोटे बड़े पत्ते
शब्द भीतर अपनी जगह बनाते
उगलने लगते हैं
पिछला सब करा धरा।
- चम्पा वैद
जिसके बीज मैं निगल गई थी बचपन में
इसके बड़े होने में पूरे साठ वर्ष लग गए
मेरी नसें इसकी जड़ें हैं
मेरी नाड़ियां इसकी शाखाएं
मेर विचार इसके छोटे बड़े पत्ते
शब्द भीतर अपनी जगह बनाते
उगलने लगते हैं
पिछला सब करा धरा।
- चम्पा वैद
very deep indeed
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति,रचना साझा करने के लिए आभार यशोदा जी
ReplyDeleteRECENT POST : तड़प,
उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सुंदर रचना और बहुत ही गहरे भाव लिये हुए.......बहुत गहरे
ReplyDeleteबहुत उम्दा ..सुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (19 -06-2013) के तड़प जिंदगी की .....! चर्चा मंच अंक-1280 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
अच्छा बिम्ब है..
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रूपक बाँधा है -बधाई !
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर रूपक रचा है ! बहुत बढ़िया !
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