Sunday, June 2, 2013

तुम्हारे अंगूरी नरम हाथों के लिए...........पाब्लो नेरूदा



ताकि तुम सुन सको मुझे
मेरे शब्दों को
कभी-कभी वे होते विरल

समुद्री चिड़ियों के पदचिह्नों-से समुद्र तटों पर
यह गलहार मदमस्त घण्टी,

छैलकड़ी तुम्हारे अंगूरी नरम हाथों के लिए
और मैं देखता अपने शब्दों को एक लम्बी दूरी से
मुझसे बहुत ‍अधिक वे तुम्हारे हैं,

लता की तरह मेरी पुरानी पीड़ाओं पर वे करते आरोहण
जो चढ़ती सीलन-भरी दीवारों पर इसी तरीक़े से,

इस निष्ठुर क्रीड़ा के लिए दोषी हो तुम,
वे निकल भागते मेरे उदास-अंधेरे बिछौने से,
सब कुछ भर देती हो, तुम भर देती हो सब कुछ

तुमसे पहले आबाद कर देते हैं मेरे शब्द
उस एकान्त को, जहां तुम जगह लेती हो,

और तुम्हारी बनिस्बत मेरी उदासी में अधिक काम के हैं वे!
अब मैं उन्हें कहना चाहता हूं जो चाहता रहा हूं मैं तुम्हें कहना
सुनने के लिए तैयार करते हुए कि; मैं चाहता हूं तुम सुनो मुझे

व्यथा की हवाएं चुपचाप खींच ले जाती हैं हमेशा की तरह
कभी-कभी सपनों के तूफान निश्शब्द खटखटाते हैं उन्हें

तुम ध्यान देती हो दूसरी आवाजों में मेरी दुखभरी अभिव्यक्ति के बीच
जैसे पुराने सुने शोकगीत, पुरानी प्रार्थनाओं के स्वभाव, कुल-गोत्र
प्यार करो मुझे मेरी साथी, यूं त्यागो नहीं,

अनुसरण करो मेरा, मेरी मित्र, दुख की इस तेज लहर में।
पर मेरे शब्द तो तुम्हारे प्रेम से रंगे हैं

घेर लिया है सब कुछ तुमने, तुमने घेर लिया सभी कुछ
रच रहा हूं उन्हें एक अन्तहीन माला में
तुम्हारे गोरे अंगूरों-से चिकने हाथों के लिए।


----पाब्लो नेरूदा 
वेब दुनिया काव्य संसार से





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