Saturday, June 22, 2013

अस्थियों के बीच देवभूमि-काव्य...............भारती दास

 
अस्थियों से हैं  घिरे केदार
देव भूमि में हा हा-कार

प्रकृति का यूँ कहर है बरपे
असंख्य मौत में लोग है तड़पे

हंसी-खुशी जो निकले घर से
लौट सके न वो फिर तन से

सचमुच रूद्र बन गए हैं काल
किस लिए नेत्र हुए हैं लाल

अधम हुई है मानवता
विकराल हुई है बर्बरता

अनन्त काल से ही कुछ मानव
करता है अपराध- उपद्रव

चरित्र-चिंतन और व्यवहार
मनुष्य ने किया केवल खिलवाड़

प्रकृति की कोमल हरियाली
जंगल कटी- मिटी खुशहाली


बादल फटना बारिश होना
नदियों में बाढ़ों का आना

ये कुदरत की विनाशलीला
अनगिनत जीवन को छीना

जो प्रकृति थी जीवन दायी
अब हुई है वो दुख-दायी

सुरसरी की निर्मल वो धारा
रौंद दिया सपनों को सारा

पहले हम यही थे सुनते
शिव है जटा में गंग समेटे

अब शिव हैं गंगा में लेटे
पृथ्वी का हर पाप लपेटे

या  शिव में कुछ शक्ति नहीं है
या जग में कुछ भक्ति नहीं है

शायद कलयुग हुआ शेष है
धर्मयुग का हुआ प्रवेश है

किस से कहें किसको समझाये
दर्द-पीड़ा जो मन को  सताये

देवभूमि में जो हुए समर्पित
नयन-नीर उनको है अर्पित

ये विनाश इतिहास बनेगा
याद में उनकी अश्क बहेगा

-भारती दास
गांधीनगर,गुजरात

11 comments:

  1. bilkul sahi kaha apne apni rachna kay dwara...fir bhi hum jag jaye tho baat bane.....umda prastuti

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  2. बहुत सुन्दर रचना | बधाई

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,आभार।

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  4. बहुत सुन्दर रचना |

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  5. खूबसूरत रचना...

    केदारनाथ में फसे लोगों की जीवन की कामना...


    जय हिंद जय भारत...

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  6. देवभूमि में जो हुए समर्पित
    नयन-नीर उनको हैं अर्पित
    बहुत सुंदर रचना की है आपने मन के भावों की , सच में हम असहाय से हैं

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  7. सच यह संशय का समय है.

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  8. ये विनाश भला कौन भूला सकेगा ...
    सार्थक रचना

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  9. खूबसूरत रचना...

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  10. बहुत सुंदर रचना

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