Monday, May 27, 2013

आईना.................डॉ. परमजीत ओबराय





आईना वही है
चेहरे बदल गए
पुराने चेहरे लगे दिखने
अब नए-नए।

भावनाएं डूब गईं अब अंतर्गुहा में
दिखावा हो गया प्रधान
आज के इस जहान में।

रिश्ते वही
व्यवहार बदल गए
धरती वही है
लोग बदल गए
आत्मा है वही
शरीर बदल गए
हेर-फेर के इस प्रांगण में
हृदय बदल गए।

भगवान है तुझमें
न दिया ध्यान तूने
आकर, रहकर शरीर घट में
बिना आदर पाए
चले गए।

बाद में पछताने से क्या होगा
शरीर तो अब मिट्टी में मिल गए।

- डॉ. परमजीत ओबराय
रचनाकार अप्रवासी भारतीय हैं

12 comments:

  1. भगवान है तुझमें
    न दिया ध्यान तूने
    आकर, रहकर शरीर घट में
    बिना आदर पाए
    चले गए।

    बहुत ही प्रेरणास्पद!!

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  2. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (28-05-2013) के "मिथकों में जीवन" चर्चा मंच अंक-1258 पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. वाह ... बेहतरीन

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  5. आपकी यह रचना कल मंगलवार (28 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  6. मन की उथलपुथल को उजागर करती भावनात्मक प्रस्तुती |
    सुन्दर रचना |

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  7. सच कहा है ...
    शासीर मिट्टी हो जाने के पहले भी ये बात समझ आ जाए तो सार्थक है जीवन ...

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  8. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति

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  9. bahut sahi ..bat ....pachhtane se kya hoga ...

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