Thursday, May 30, 2013

कोई काँटा चुभा नहीं होता.................बशीर बद्र

 
कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता 
  ---डॉ.बशीर बद्र

12 comments:

  1. बहुत लाजवाब गजलें, मुझे बद्र साहब की गजलें बहुत पसंद है

    ReplyDelete
  2. बढ़िया....
    बशीर बद्र साहब का तो जवाब नहीं...
    शुक्रिया यशोदा.
    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  3. कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
    यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
    बेवफाई की मजबूरी
    मेरे समझ में नहीं आती
    छोटी मुंह बड़ी बात
    मैंने लिखने की हिमाकत की

    ReplyDelete
  4. बशीर जी को पढ़वाने का आभार .... बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति

    ReplyDelete
  5. लाजवाब!!!

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर....मेरी नई पोस्ट.."ज़रा अज़मां कर देखिए"

    ReplyDelete
  7. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....

    कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
    यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
    बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete
  8. प्रशंसनीय प्रस्तुति....

    ReplyDelete
  9. रात का इंतज़ार कौन करे
    आज कल दिन में क्या नहीं होता-----

    सहजता से बहुत कुछ कहती रचना
    आभार

    ReplyDelete
  10. आदरणीय आपकी यह अप्रतिम कविता 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
    कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारें,आपकी प्रतिक्रिया का सादर स्वागत् है।

    ReplyDelete
  11. कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
    यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
    ...वाह! लाज़वाब ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आभार...

    ReplyDelete
  12. बशीर साहब की लाजवाब गज़ल ... मज़ा आ गया ...

    ReplyDelete